आखिर जब सूर्यपुत्र कर्ण दिग्विजय यात्रा के दौरान द्वारका को जितने गया तब भगवान श्रीकृष्ण ने क्या किया क्या? क्या भगवान श्रीकृष्ण और कर्ण के बीच महा युद्ध हुआ था? तो आइये जानते हैं।
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भगवान श्रीकृष्ण जैसा उत्कर्ष और साहस से bhara योद्धा द्वापर युग में कोई भी नहीं था क्योंकि श्री कृष्णा स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे. apni असीम शक्ति से वो किसी को भी पल भर में खत्म कर सकते थे.
लेकिन क्या आप जानते हैं की एक बार कर्ण ने भगवान श्री कृष्णा की नगरी द्वारका पर आक्रमण किया था. आखिर क्यों कर्ण ne द्वारका पर आक्रमण किया था? or जब कर्ण ने द्वारका पर आक्रमण किया tab भगवान श्रीकृष्ण ने क्या किया?
गंधर्वों ने दुर्योधन को बनाया बंदी
doston एक बार जब kaurav वन में विहार करने गए थे तब गंधर्वों ने उन पर आक्रमण किया था और इस युद्ध में
गंधर्वों ने कौरवों को परास्त करके दुर्योधन को बंदी बना लिया था.
gandharvon और उनके राजा चित्रसेन ne युद्ध में कई saaari मायाओं का प्रयोग किया था जिसके kaaran कौरव उनके सामने टिक nahi paaye और इस युद्ध में लाखों गंधर्वों ने एक साथ कर्ण पर आक्रमण किया और कर्ण के धनुष को तोड़ डाला jis वजह से कर्ण को युद्ध से पीछे हटना पड़ा.
गंधर्व युद्ध के समय कर्ण के पास अपना दिव्य धनुष यानी विजय धनुष था ही नहीं क्योंकि कर्ण ने कभी भी विजय धनुष का इस्तेमाल नहीं किया. उसने तो केवल महाभारत के 17 दिन में ही अर्जुन के विरुद्ध उस विजय धनुष का उपयोग किया था.और इस युद्ध में अपने साधारण से धनुष के बलबूते पर कर्ण कोई भी दिव्यास्त्र नहीं चला paaye थे.
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इसीलिए युद्ध में कर्ण को पीछे हटना पड़ा. ab कर्ण के सामने ही गंधर्वों ने दुर्योधन को बंदी बना लिया था लेकिन कहते हैं की
अर्जुन ने ही गंधर्वों से स्वयं दुर्योधन को बचाया. और इसी के चलते log karn ki वीरता पर कई सारे सवाल uthane lage.
कर्ण की दिग्विजय यात्रा की शुरुआत
jiske baad karn ne अपने khoye हुए सम्मान को वापस paane के लिए दिग्विजय यात्रा करने का विचार किया.
ye दिग्विजय यात्रा कर्ण ने तब की थी जब स्वयं पांडवों को 12 वर्षों के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास के लिए भेज दिया था.
और उस समय दुर्योधन ने धरती के सबसे मुश्किल यज्ञ yaani ki वैष्णव यज्ञ को किया था. Usi समय कर्ण ने दिग्विजय यात्रा शुरू की और वो अपनी विशाल sena के साथ दिग्विजय के लिए निकल pada.
पहले कर्ण ने पांचाल नरेश द्रुपद के राज्य पर आक्रमण किया और अपने विशाल sena के साथ कर्ण ने द्रुपद के राज्य को चारों और से घर लिया. जब द्रुपद को संदेश मिला की कर्ण ने उसके राज्य पर आक्रमण किया है तब drupad अपनी sena को लेकर युद्ध क्षेत्र में pauncha. इसके बाद कर्ण और drupad में एक भयंकर युद्ध हुआ.
लेकिन कहते हैं की इस युद्ध में कर्ण ने drupad को पराजित कर अपने अधीन कर लिया था और इसके बाद द्रुपद का राज्य पांचाल हस्तिनापुर के अधीन हो गया. कर्ण ने drupad को सोना चांदी और कर देने के लिए विवश कर दिया था.
महाभारत kaal में bhagdatt naamak एक prakrami राजा हुआ करता था. wo पराग ज्योतिषपुर ka राजा था. वैसे तो bhagdatt बहुत ही बुजुर्ग योद्धा था लेकिन फिर भी उसमें इतना prakaram था कीउनसे युद्ध करने का कोई भी नहीं सोचता था क्योंकि उनसे युद्ध करना बिल्कुल नामुमकिन था.
दरअसल bhagdatt के पिता का नाम नरकासुर था उसके पास भगवान विष्णु का वैश्णवस्त्र था उसने अपने पुत्र bhagdatt को ye अस्त्र दे दिया था. वैश्णवस्त्र को किसी भी अस्त्र से नहीं roka जा सकता था.
लेकिन कर्ण ने अपने दिग्विजय यात्रा के दौरान महाप्रकर्मी bhagdatt को भी parastt कर दिया था.
digvijay यात्रा के समय कर्ण ने bhagdatt के राज्य पर बड़े ही कुशलता के साथ आक्रमण किया और इसके बाद bhagdatt के साथ जब कर्ण का महायुद्ध हुआ तो कर्ण उसमें bhagdatt ko parastt कर ke एक वीर योद्धा कहलाया.
इसके बाद कर्ण ने मगध और छेदी को भी जीत liya था.
इसी तरह कर्ण ने saari दिशाओं में दिग्विजय यात्रा कर सारे राज्यों को अपने अधीन कर लिया था यानी की हस्तिनापुर के अधीन कर लिया था.
कर्ण पहुंचे श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका पर
और अंत में कर्ण अपनी sena को लेकर श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका पर pahunchte हैं.
देवराज इंद्र के पुत्र अर्जुन के साथ करण की दुश्मनी थी इसीलिए इंद्र ने जल्द ही कर्ण की दिग्विजय यात्रा का संदेश बलराम जी के पास पहुंचा दिया.
ab इंद्र बलराम जी से कहते हैं ki hey balraam! कर्ण digvijay yatra par nikla hai. उसने एक-एक करके सारे राज्यों को parastt कर दिया है और ab उसकी nazrein द्वारका पर है और वो अपनी sena के साथ द्वारका की और बढ़ रहा है.
बलराम जी को आया क्रोध
इंद्रदेव की बात sunkr बलराम जी कहते हैं हस्तिनापुर की अधीनता हम यादव कभी स्वीकार नहीं करेंगे अगर करण की sena द्वारका के द्वार पर पहुंची तो हम उसकी sena के साथ-साथ उसे भी यमलोक के द्वारा पर pahuncha देंगे और आज पूरा संसार बलराम ke क्रोध को dekhega.
द्वारका पर आक्रमण करने से पहले कर्ण ko yamlok भेज दूंगा. इसके बाद बलराम जी ने भगवान श्री कृष्णा के पास जाकर उनसे कहा करण का दुस्साहस to देखो kaanha, वो sena लेकर humari dwarka पर आक्रमण करने aa रहा है. तुम अपना सुदर्शन चक्र उठाओ और आज पूरा संसार यादवों का बल देखेगा.
मैं नहीं चाहता की युद्ध की अगवाई तुम करो क्योंकि युद्ध की अगुवाई मैं करूंगा और कर्ण और उसकी sena को मौत के घाट उतार दूंगा.
बलराम जी ke क्रोध ko देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें शांत करते हुए कहा daau! आप पहले शांत हो जाइए बिना कर्ण की मंशा को jaane हमें उससे युद्ध नहीं करना चाहिए जितना मैं करण को जानता हूं वो सभी योद्धाओं से थोड़ा भिन्न है.
श्री कृष्ण और बलराम कर्ण से युद्ध के लिए पहुंचे
वीर होने के साथ-साथ वो बहुत ही विनम्र स्वभाव का भी है करण से युद्ध करने से पहले हमको उससे जरूर बात करनी चाहिए.
भगवान श्रीकृष्ण की इन baaton से भी बलराम जी का गुस्सा शांत नहीं हुआ वे भगवान श्री कृष्ण और पुरी यादव sena के साथ द्वारका के मुख्य द्वारा पर पहुंचे.
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जी हां यादव sena यानी की नारायणी sena जिसका मुकाबला कोई भी नहीं कर सकता था इसके बाद करण भी अपनी sena के साथ द्वारका पहुंचे और अपने सामने बलराम जी और भगवान श्री कृष्णा को देखकर हाथ जोड़कर प्रणाम किया. लेकिन बलराम जी का क्रोध शांत नहीं हुआ उन्होंने अपने हाथ पर हल उठाकर कर्ण को युद्ध की चुनौती दी.
कर्ण ने श्री कृष्ण और बलराम पर चलाया बाण
बलराम जी की इस चुनौती को सुनकर कर्ण ने अपने धनुष को उठाया और दो baanon का sandhaan किया.
कर्ण के सामने बलराम जी और भगवान श्री कृष्णा जैसे महाप्रकर्मी योद्धाओं को देखकर कर्ण की sena और narayani sena
बेहद achambhe में थी.
युद्ध क्षेत्र पर मौजूद हर एक योद्धा चिंता में था इसके बाद कर्ण ने धनुष की प्रत्यंचा को खींचकर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी पर एक बाण चलाया जो देखते ही देखते दो भिन्न-भिन्न बड़ी-बड़ी मालाओं में बदल गया और देखते ही देखते भगवान श्री कृष्णा और बलराम जी के गले में ये माला जा कर गिरी.
कर्ण के विनम्रता को देखकर बलराम जी का क्रोध शांत हो गया वो आश्चर्य चकित हो गए और इसके बाद कर्ण ने बलराम जी से कहा! है बलदाऊ! हस्तिनापुर की तरफ से मैं दिग्विजय यात्रा पर निकाला मैंने चारों दिशाओं के सारे राज्यों को जीता लेकिन श्रीकृष्ण और आपसे युद्ध करके भला मैं कैसे जीत सकता हूं. और आखिर कौन जीता है आज तक? जो मैं जितना चाहूंगा इसीलिए मैं द्वारका को jeetne नहीं आया बल्कि द्वारका के साथ संधि करने आया हूं.
इसीलिए hey baldaau! kripyaa आप हस्तिनापुर की मित्रता को स्वीकार करें.
बलराम जी हुए बहुत प्रश्न
कर्ण की baaton को सुनकर बलराम जी बहुत प्रश्न हुए उन्होंने करण से कहा अद्भुत करण अद्भुत. तुम्हारे इस विनम्रता को देखकर मैं बहुत प्रश्न हुआ हूं मैंने बहुत से बड़े-बड़े पराक्रमी योद्धा देखें लेकिन उनके अंदर विनम्रता की हमेशा कमी रहती है लेकिन आज मैंने तुम्हें देखा तो मैं भी धन्य हो गया.
समस्त राज्यों को जीत कर तुमने अपने पराक्रम की घोषणा तो कर दी लेकिन साथ ही तुम्हारी विनम्रता को देखकर मैं बहुत प्रश्न हुआ हूं और इसीलिए मैं हस्तिनापुर की मित्रता को स्वीकार करता हूं. और उसके बाद भगवान श्री कृष्णा और बलराम जी ने करण को द्वारका पर आमंत्रित भी किया जहां कर्ण समेत उनकी पुरी की पुरी sena को bhojan parosa गया.
वैसे तो कर्ण ने kai saare राजाओं को parastt कर उनके राज्यों को अपने अधीन कर लिया यानी की हस्तिनापुर के अधीन कर लिया लेकिन उसने द्वारका पर आक्रमण नहीं किया और ना ही उनसे युद्ध करने की सोची क्योंकि स्वयं करण भी जानता था जहां पर शेष नाग और स्वयं श्री हरि विष्णु के अवतार मौजूद हैं वहां पर कोई साधारण मनुष्य क्या देवता तक yudhh नहीं कर सकते.
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