दोस्तों आखिर कैसे काँप उठे पांडव जब कर्ण का बदला लेने आया उसका पराक्रमी पुत्र? आखिर कैसे लिया उसने अर्जुन से अपने पिता की मृत्यु का बदला तो आइए जानते है.
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दोस्तों Mahabharat जैसे विनाशकारी युद्ध में जब जब महान धनुर्धर की बात आयी है तो कर्ण का नाम अवश्य लिया जाता है लेकिन कर्ण के नौ पुत्र का वर्णन हमें महाभारत में देखने को मिलता है। जो बेहद ही पराक्रमी शूरवीर और महान योद्धा थे।
कर्ण के उन्हीं नौ पुत्रों में से एक ऐसा भी पुत्र था जो महाभारत के अंत तक बचा रहा। जिसने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया जिसे देखकर खुद भगवान श्रीकृष्ण भी चौंक उठे थे। क्योंकि कर्ण का वो वीर पुत्र पाने पिता के सामान ही महा पराक्रमी था उसको हराना पांडव के बस की भी बात नहीं थी दरअसल हम कर्ण के जिस वीर पुत्र की बात कर रहे हैं उसका नाम था वृषकेतु जिसके बारे में कहा जाता है कि वह ब्रह्मास्त्र वरुणास्त्र अग्नियास्त्र भव्यास्त्र ब्रह्मशीर अस्त्र का ज्ञान रखने वाला पृथ्वी का एक आखरी योद्धा था और अपनी वीरता के पर वो महाभारत युद्ध के अंत तक जीवित बचा था और यहाँ तक कि अपना शासन काल भी चलाया अपना असीम पराक्रम दिखाते हुए उसने इंद्रप्रस्थ पर राज भी किया था।
कर्ण का विवाह और उसके पुत्र
दोस्तों दरअसल अंगराज कर्ण ने रुशाली और सुप्रिया नामक दो कन्याओं से विवाह किया था। इनसे कर्ण को नौ पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। वृषकेतु कर्ण की पहली पत्नी रुशाली का पुत्र था। और उनके सब पुत्रों में सबसे छोटा भी था.
Mahabharat में Karna की पत्नी Rushali का वर्णन एक बुद्धिमान चरित्रवान और पतिव्रता पत्नी के रूप में किया जाता है. माना जाता है कि Rushali Duryodhan के विश्वास पात्र सारथी सत्यसेन की बहन थी जो Karna की मृत्यु के बाद Karna के साथ ही उसकी चिता पर सती हो गयी थी.
Rushali का पुत्र वृष केतु बचपन से ही माता के सामान बुद्धिमान और अपने पिता के सामान तेजस्वी था वृष केतु की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके खुद के पिता कर्ण के हाथों ही हुई थी.
वृषकेतु के अलावा वृषेन और सुषेण भी कर्ण और वशाली के ही पुत्र थे कर्ण ने अपने पुत्रों को धनु विद्या के साथ-साथ हर युद्ध की विद्या में माहिर कर दिया था जैसा कि हम सब जानते ही है कि कर्ण सभी युद्ध में माहिर था तलवार हो, धनुविद्या हो, मलयुद्ध हो या गधा युद्ध, कर्ण हर कहीं सर्वश्रेष्ठ थे।
वहीं दूसरी पत्नी सुप्रिया से उन चित्रसेन, सत्यसेन, सत्रुंजे, द्वीपात, प्रसेण और बनसेन प्राप्त हुए थे। ये भी अपने अन्य भाइयों की तरह ही महान पराक्रमी और युद्ध में कौशल थे।
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अब महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि पर कर्ण के पुत्रों ने खलबली मचा दी थी. उन्होंने अनेकों पांडव योद्धाओं को हराया तथा भारी मात्रा में पांडव सैनिकों का संघार भी किया. कर्ण पुत्रों ने युद्ध में वो रण कौशल दिखाया जिसे देखकर अनेकों पांडव योद्धा भयभीत होते थे अपने पिता कर्ण के समान यह भी पांडव के विजयश्री में बहुत बड़े बाधक थे. पांडव जानते थे कि जब तक वह कर्ण और उसके पुत्रों को परास्त नहीं करेंगे तो वो युद्ध नहीं जीत सकते.
युद्ध सत्रहवें दिन कर्ण और Arjun के बीच महा घनघोर युद्धहुआ और कर्ण Arjun के हाथों वीरगति को प्राप्त हो गए.
अब उसी दिन Arjun का कर्ण के तीन पुत्रों Vrishena, Shatrughanjay और द्वीप से महा भयानक युद्ध हुआ तथा अपने पिता के सामान ही वो भी Arjun के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए और साथ ही Karna पुत्र Prashen की मृत्यु सत्यार्थी के हाथों हुई थी.
वही bansen को महाबली भीम ने मारा था तथा Chitrasen, Satysen, Susen, Nakula के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए।
अब इस प्रकार कण के नौ पुत्रों में से आठ पुत्र महाभारत में मारे गए। वृषकेतु, महाभारत काल का इकलौता जीवित और सबसे जवान पुत्र था। वृष केतु के पिता और अन्य सभी भाइयों का अंत हो चुका था। उसकी माता भी कर्ण की चिता में सती हो गई थी। अब वृषकेतु अकेला हो गया था। उसके सभी जन चले गए थे लेकिन इसके बावजूद उसने कभी भी अपने मन में बदले की भावना नहीं पाली।
वृष केतु का बचपन उसकी माता के साथ बीता था। इसलिए उसके चरित्र पर उनकी माता का प्रभाव पड़ा। उसने कभी भी पांडव के विषय में कुछ गलत नहीं सोचा। कभी भी उसने अर्जुन के विषय में कुछ गलत नहीं सोचा। जो स्वयं कर्ण का हत्यारा था
और जिन्होंने कर्ण को अधर्म करके मारा था.
वृषकेतु धर्म और अधर्म का ज्ञान रखता था. महाभारत युद्ध के बाद पांडव विजयी रहे तथा युधिष्ठिर हस्तिनापुर में राज करते रहे लेकिन फिर भी उनके प्रति उसके मन में कोई भी द्वेष भावना नहीं थी.
वृषकेतु बना इंद्रप्रस्थ का राजा
जब कर्ण की मृत्यु के बाद पांडव को पता चला कि कण उनके ज्येष्ठ भ्राता थे और साथ ही उनका पुत्र वृष केतु आज जीवित है तो उन्होंने उसे महल में बुलाया अपने पिता के समान ही वह भी निडर था वो पांडवों से डरा नहीं ना ही उनके प्रति कोई मन में बैर भावना थी
अब जब वृष केतु पांडव से मिला तो माता कुंती समेत सभी पांडव द्रौपदी और सुभद्रा पश्चाताप की अग्नि में झुलस रहे थे अर्जुन समेत सभी पांडव स्वयं को कर्ण का अपराधी मान रहे थे अब अपने के बड़े भाई कर्ण और भतीजों की मृत्यु का उन्हें बहुत दुःख था. लेकिन वो इस बात से प्रसन्न थे कि उनका एक भतीजा अभी भी जीवित है वृष केतु को पांडव से बड़ा स्नेह और लाड मिला और उन्होंने अपने भाई कर्ण को सच्चीश्रद्धांजलि देते हुए वृष केतु को इंद्रप्रस्थ का राजा बना दिया.
वृषकेतु का शासन
अब कर्ण पुत्र वृषकेतु ने Yudhishthira की छत्रछाया में अनेको वर्षों तक शासन किया और एक आदर्श राजा के रूप में खुद को स्थापित किया कहते है वृषकेतु घटोत्कच के दूसरे पुत्र Anjan Parva का बहुत ही घनिष्ठ मित्र था दोनों आपस में भाई भी थे और बहुत अच्छे मित्र भी उन्होंने मिलकर अनेकों युद्ध जीते थे.
दोनों ने मिलकर भद्रावती की सेना को हराया था Virush Ketu ने Arjuna के संरक्षण में ही कई युद्ध जीते और अनेकों युद्ध में Arjuna का साथ भी दिया वो अपने पिता की तरह एक महान धनुर्धारी बना.
Yudhishthira के अश्वमेध यज्ञ के समय Arjuna के साथ वृषकेतु भी भारत विजय पर निकला जहाँ दोनों ने मिलकर अनेकों कई सारे राजाओं को परास्त किया और इसी अभियान के समय जब Arjuna अनजाने में ही अपने दूसरे पुत्र Babru वाहन से युद्ध लड़ रहा था तब उस समय Babru वाहन ने भी वृषकेतु के साथ युद्ध किया.
तो ये थी कहानी ब्रह्मास्त्र हो या फिर ब्रह्मांड, दंड, अस्त्र सबका ज्ञान रखने वाला महाभारत का एक आखरी योद्धा जिसने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर कभी भी यह ज्ञान किसी और को नहीं दिया। क्योंकि वो शांति को महत्व देता था।
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